सोमवार, 25 जुलाई 2011

बातें हैं बातों का क्या


घटना, खबर अउर अफवाह में कोनों समानता हो, चाहे न हो, बाकी सम्बन्ध जरूर है. कानों कान खबर होना, दीवारों के भी कान होना (“सुना है लिफ्ट की दीवारों के कान नहीं होते” वाला अपवाद को छोडकर) आदि मोहावरा सब एही सम्बन्ध साबित करता है. अउर एही चक्कर में असली घटना अउर असली खबर बेचारा दुहाई माई-बाप करते रह जाता है.
एक बार इलाहाबाद में अइसने बात हुआ. एगो अखबार में खबर देखे कि साहित्यकार उपेन्द्र नाथ “अश्क” जी अपना घर में लेमू (नीम्बू) बेच रहे हैं. मन में बड़ा तकलीफ हुआ. नाप दिए रस्ता उनके घर का, लीडर रोड पर खुसरोबाग के बगल में. जाकर देखे कि अश्क जी एगो छोटा सा परचून का दोकान खोले हुए हैं. लौटते समय रास्ता भर हम दुनो भाई एही सोचते हुए लौटे कि लेमू तो कहीं था नहीं, त अखबार में लेमू कइसे लिख दिया. तब सायद दोसरा दिन अखबार में खुलासा आया कि एगो हिन्दी अखबार में खबर छपा था - अश्क जी परचून का दोकान खोले हैं घर में. अंगरेजी वाला चून देखिस अउर चून का अनुबाद कर दिया “लाईम”. उसके बाद कोनों हिन्दी अखबार वाला नक़ल मारिस अउर लाइम का हिन्दी बनाया लेमू. बस हो गया घटना के साथ दुर्घटना. खैर एही बहाने हमको उनका दरसन का सौभाग्य प्राप्त हुआ.
दूर कहाँ जाते हैं, घरे में देख लीजिए ना. एक दिन सिरीमती जी से कहे, “ए जी! बहुत दिन से छुट्टी नहीं लिए हैं ऑफिस से. अब रिलैक्स करने का मन करता है. बेटी का इस्कूल बंद हो, तब सोचते हैं छुट्टी लेकर पटना चलें. सब टेंसन भूल-भाल कर आराम से रहेंगे हफ्ता भर.”
सबेरे ऑफिस जाने के पहिले नाश्ता करते समय ई बात हुआ था. अभी मेट्रो में जमुना बैंक भी नहीं पहुंचे थे कि ससुर जी का फोन आ गया,
“तब... कब का प्रोग्राम बना रहे हैं.”
“अभी कहाँ. ऑफिस से इतना आसानी से कहाँ छुट्टी मिलता है. बस उठकर चले आयेंगे कभी.”
“१५ को आ रहे हैं तो बहुत अच्छा है. उस समय पुतुल भी अपना बच्चा को लेकर आएगी. आपलोग छट्ठी में नहीं आए थे, तो सब लोग याद कर रहा था.”
अच्छा हुआ कि उसी समय सिग्नल ड्रॉप हो गया अउर मोबाइल बंद. सिग्नल चालुए हुआ था कि सासू माँ लाइन पर मौजूद,
“मेहमान! १५ को जब आ ही रहे हैं, तो तनी बेसी दिन का छुट्टी लेकर आइयेगा. हमलोग बूढा बूढ़ी भी तनी नतिनी के साथ रहना चाहते हैं. आप तो सुबह आते हैं अउर साम को भाग जाते हैं अपने घर.”
“मम्मी! अब आपके यहाँ कोइ बतियाने वाला है नहीं अउर आप लोग से हम बेसी बतिया भी नहीं पाते हैं. मगर ई बताइये, आपको १५ तारिख कौन कहा?”
“अबके तो पापा बताए हैं कि १५ तारिख को अचानक उठकर चले आइयेगा आप लोग.”
“मम्मी! अभी ऑफिस पहुंचकर बात करते हैं. बहुत भीड़ है मेट्रो में.”
माथा अब हमारा गरमाने लगा था. मगर का करें, रिश्ता अइसा कि बोल नहीं सकते. ऑफिस पहुंचे अउर अभी टिकाए भी नहीं थे तसरीफ कि मोबाइल घनघनाने लगा. हमारी दिल्ली वाली साली,
“वाह जीजा जी! आप तो छुपे रुस्तम निकले!”
“मेम साहब! अब इस उम्र में छुपा रुस्तम वाला कोइ काम नहीं करने वाले हैं हम.”
“पन्द्रह तारीख का राजधानी में टिकट बुक भी हो गया अउर हमको बताए भी नहीं. आज आपको राजेश मम्मी के लिए एक साड़ी दे जायेंगे. लेते जाइयेगा. और हाँ, पुतुल की बेटी के लिए चांदी का पायल दीदी को बोल दिए हैं, खरीद लेगी हमारे तरफ से.”
“सुनिए जी! राजधानी क्या, किसी भी ट्रेन में टिकट नहीं मिल रहा है १५ तारीख का. जब जायेंगे तो कह देंगे आपको.”
“बनाइये मत! आपका आदत है मजाक करने का.”
जैसे तैसे पीछा छूटा. डर से सिरीमती जी को फोन नहीं कर रहे थे कि झगड़ा हो जाएगा. मगर दिमाग में आग लगा हुआ था. हई देखिये..आग में घी, हमारी छोटकी साली सहारनपुर से,
“तब जीजा जी! क्या हाल चाल है.”
“जिस बात के लिए फोन की हैं ऊ कहिये दीजिए, तब हम ऑफिस का काम सुरू करें.”
“आप तो गुस्सा हो जाते हैं. आप ठहरे बड़े आदमी.”
“अब देखिये! ई बड़ा-छोटा कहाँ से आ गया!!”
“और क्या, १५ तारीख को राजधानी का टिकट नहीं मिला तो फ्लाईट में टिकट बुक कर लिए हैं आप. हम तो नहीं कर सकते हैं ना.”
“अच्छा तो आपको भी १५ तारिख का हवा लग गया!”
“हम भी आ रहे हैं १४ को दिल्ली, आपके साथ चलेंगे पटना. हमारा भी फ्लाईट का टिकट कटा दीजिए. सबसे बड़े जीजा जी हैं, इतना भी नहीं कर सकते!”
“अरे आपके लिए तो हम चार्टर्ड फ्लाईट कर सकते हैं, मगर जा कौन रहा है.”
बहुत मोसकिल से पीछा छूटा. जब १५ तारिख निकल गया तब जाकर सबको बिस्वास हुआ.
हमरी सिरीमती जी असल में अकेले पटना जाना भी नहीं चाहतीं. नहीं त हम १५ तारीख को भेज देते. मगर ऊ बोलीं कि आप नहीं जाइयेगा तो हम भी नहीं जायेंगे.
इसको लेकर हमरे सोसाइटी में बहुत तरह का खबर फैला हुआ है.
“मिसेज वर्मा पल्लू से बांधकर रखती हैं. इसीलिए कभी छोडकर नहीं जातीं अकेले पटना कुछ दिनों के लिए.”
“अरे नहीं! वर्मा जी के चालचलन पर शक होगा, तभी नहीं छोड़तीं.”
“अब इतना भी शक क्या करना. दिन भर मर्द बाहर ही तो रहते हैं.”
“मुझे तो वर्मा जी बहुत सीधे सादे लगते हैं. नज़र झुकाकर आते जाते हैं. नज़र मिल जाए तो नमस्ते ज़रूर करते हैं.”
मगर असली बात हम जानते हैं. हमको खाना बनाना नहीं आता है. अउर बाहर का खाना हमको पसंद नहीं. अइसे में अगर कहीं ई हफ्ता भर के लिए पटना चली गयीं, त हमारा तो ब्रेकफास्ट से लेकर डिनर तक हो गया ब्रेड अउर दूध चाहे चूडा-दूध. बेचारी हमारे खाने के परेसानी से नहीं जाती हैं अउर लोग का-का बात बनाता है. बात भी सहिये है जीभ में हड्डी त होबे नहीं करता है, जो मन में आया बोल दिया.
मगर पिछला ५-६ दिन से उनको वायरल बुखार हो गया था. एकदम हिल-डोल बंद. कोसिस करके कोनों कोनों तरह से नास्ता, खाना बनाना सुरू किये. कुछ प्रयोग भी किये मसाला के साथ. ताज्जुब एक्के बात का हुआ कि हमसे एक्को दिन, न नमक बेसी हुआ, न मिर्चा जादा, न मसाला कम. अउर स्वाद अद्भुत! कुछ तो मेहनत का फल था इसलिए मिठास था खाना में अउर कुछ ई सब हम सेवा के भावना से कर रहे थे इसलिए भी स्वाद था. तनी तबियत ठीक हुआ उनका त हम बोले, “अब तुमको हमारे खाना का चिंता नहीं करना पडेगा. तुम निश्चिन्त होकर हमको छोड़कर जा सकती हो.”
“छोड़कर नहीं जाने वाले हैं हम. अभी तो पहिला जन्म भी कम्प्लीट नहीं हुआ है. करार तो सात जन्म का है ना!”

रविवार, 10 जुलाई 2011

बीमार से मिलने कोइ बीमार तो आए!!


भगवान ना करे, मगर कभी बीमार पड़े हैं आप लोग? आप कहिएगा ई भी कोनो बात हुआ. आदमी का बीमार पड़ना, उसके स्वस्थ रहने का निसानी है अउर ई दुनिया में कउन है अइसन आदमी जो बीमार नहीं पड़ा हो! मगर तनी सोचकर देखिये कि आप बीमार हैं अउर कोनो देखने नहीं आए, तब कइसा लगेगा आपको? हम जानते हैं कि ई बहुत बेचैनी वाला बात है. पत्नी भी सुनाने से बाज नहीं आएंगी कि फलाना आपका बहुत अच्छा दोस्त था, एक्को बार देखने भी नहीं आया. देखना त दूर, फोन करके हालचाल भी नहीं पूछा! नवीन जी को देखिए, केतना अच्छा आदमी हैं बेचारे, ओतना दूर से मिलने आए.
अब उनको हम का समझाएं कि हम जानकर दोस्त लोग को मना कर दिए थे आने से. असल बीमारी में लोग देखने तो आ जाता है, मगर मुसीबत होता है बीमार का. का हुआ है, कइसे हो गया, किसका इलाज चल रहा है, का का दवाए दिए हैं, जांच हो गया, बहुत सीरियस तो नहीं है ना कुछ, ऑफिस का चिंता मत करना, जेतना दिन रेस्ट बोला है डॉक्टर ओतना दिन से पहिले ज्वाइन मत करना, पूरा ठीक हो जाओ तब्बे ऑफिस जाना, परहेज से परहेज मत करना, एक बार उनको भी देखा लेते, राजेस उन्हीं से एक हफ्ता में ठीक हो गया था, बहुत कम दवाई देते हैं, होमियोपैथी भी इसमें बहुत फायदा करता है, खट्टा फल मत खाना, डॉक्टर सब खाने को बोलता है, मगर तुम परहेज ही करना, पानी जेतना पियो ओतने फायदेमंद है, पपीता पसंद नहीं है तइयो खाने का कोसिस करो...! जेतना लोग, ओतने सवाल अउर ओतने सलाह.
अब इतना सवाल का जवाब हर आदमी को दिन भर लगातार देना पड़े त आदमी का बीमारी बढ़ेगा कि कम होगा! इसीलिये हम मना कर दिए कि सिरीमती जी का ताना बर्दास्त कर लेंगे, मगर दोस्त लोग का सवाल अउर सलाह नहीं बर्दास्त होगा हमसे.
एही से हम जब कोनो बीमार को देखने जाते हैं (जाना पड़ता है... नहीं त सिरीमती जी कहेंगी कि हमलोग नहीं गए त बहुत बदनामी होगा. आप बीमार थे त बेचारे सुबह साम आते थे) त कोसिस करते हैं कि ऊ सब सवाल नहीं करें जो हमको नापसंद है. अब आदमी का इलाज चलिए रहा है, त अपना समझ से अच्छा डॉक्टर को देखइबे किया होगा, अच्छा डॉक्टर होगा तो दवाई भी ठीके दिया होगा. अब हम कोनो डॉक्टर त हैं नहीं. का फायदा ई सब फालतू बात करने से. इसलिए हम मरीज को हंसाने अउर खुस रखने का काम करते हैं. चुटकुला सुनाना (डॉक्टर मरीज वाला), चाहे किसी के बात से बात निकालकर मजाक करते हुए माहौल को हल्का बनाते रहना. इससे फायदा ई होता है कि मरीज को भी थोड़ा सा खुसी मिल जाता है अउर बीमारी के माहौल से थोड़ा रिलीफ भी. बेचारा सुई, दवाई अउर परहेज के जेल में पहिलहीं बंद है, उसको ओही सब याद दिलाकर अउर तकलीफ काहे बढ़ाना.
हमरे ई गुन के कारन हम सोसाइटी में बहुत पॉपुलर विजिटर माने जाते हैं. दूर दूर से लोग हमको खाली मरीज को देखने के लिए बुलाता है. जेनेरल ओपिनियन एही है हमरे बारे में कि वर्मा जी के आने से मरीज उनके बात को सुनकर आधा ठीक हो जाता है. लगता ही नहीं है कि आदमी बीमार है. आधा घंटा में आधा लीटर खून बन जाता है मरीज का देह में. मरीज ओतना देर तक सब परेशानी भुला जाता है, जेतना देर वर्मा जी रहते हैं सामने. हमरे सोसाइटी के सर्वे से भी पता चला है कि जउन मरीज को हम देखने जाते हैं ऊ दोसरा मरीज के तुलना में तीन दिन पहिले ठीक हो जाता है.
मगर हमको उस दिन बहुत गहरा सदमा लगा जब हमरे एक बुजुर्ग पड़ोसी की पत्नी का ऑपरेशन हुआ अउर हम उनको देखने हस्पताल गए. उन दोनों का हमरे ऊपर बहुत स्नेह है. उम्र में भी काफी बड़े हैं ऊ हमसे. उनकी पत्नी का पेट का ऑपरेशन हुआ था अउर हम सिरीमती जी के साथ गए थे देखने. हम पांच मिनट रुके होंगे वहाँ पर कि ऊ बोलीं, “वर्मा जी! जब तक हम पूरा तरह से ठीक नहीं हो जाते हैं, आप हमको मत देखने आइयेगा!”
हमरी सिरीमती जी का मुँह उतर गया अउर हम भी घबरा गए कि का गलती हुआ हमसे जिसके कारन ऊ हमको आने से मना कर दीं. उनको भी समझ में आ गया सब बात. तुरत हँसकर बोलीं, “आप जेतना देर रहते हैं, कोई न कोई बात पर हंसाते रहते हैं. आपके बात पर कोई हँसे बिना रह भी नहीं सकता है. मगर हमको डॉक्टर हँसने से मना किया है, क्योंकि हँसने से पेट पर जोर पड़ता है अउर टाँका टूट जाने का डर है.” 
उनका ई बात पर सब लोग ठठाकर हँस दिया अउर हम भी बिदा लेकर चलने लगे. उसी समय पता नहीं कौन सा महँक नाक में गया कि हमको छींक आ गया. ऊ दुनो बुजुर्ग के मुँह से एक साथ निकला, “शतन्जिवी!!” 
कोइ छींकता है तो हमारे यहाँ “शतन्जिवी” कहते हैं, हमारा एगो आंध्र प्रदेश का दोस्त था ऊ “शातायुष” कहता था. गूगल पर बहुत सा बात लिखा था इसके बारे में. मगर असल मतलब त एक्के है कि “सौ साल जियो!”
अब सौ साल जी पाते हैं कि नहीं ई दुनिया में - का पता, मगर ब्लॉग-दुनिया में हम भी आज सौवाँ पोस्ट लिखिए दिए!! हो गए हम भी “शतन्जिवी!!”