शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

माँ सुन्दर होती हैं


एगो बहुत पुराना कहावत है कि हर आदमी को अपना बच्चा अऊर दोसरा का जोरू हमेसा सुन्दर लगता है. एगो दोसरा कहावत भी बीच में चला था कि मोबाइल फोन अऊर मेहरारू के बारे में हर आदमी एही सोचता है कि तनी दिन रुक जाते त बढ़िया मॉडल मिल जाता. अब ई सब कहावत में केतना सचाई है अऊर केतना मजाक, बताना बहुत मोसकिल है. ई बहस में पड़ने का कोनो फायदा भी नहीं है, काहे कि दुनो कहावत का आधा हिस्सा त सहिये है. रहा बात दोसरा हिस्सा का, त ऊ बेक्तिगत अनुभव का बात है.
खैर, अपना बच्चा सब माँ-बाप को सुन्दर लगता है, ई बात को दोसरा तरीका से सोचकर देखिये तो तनी! बच्चा के नजर में भी का एही बात लागू होता है?? सायद नहीं. एगो बच्चा अपना माँ के साथ पुराना फोटो का एल्बम देख रहा था. अचानक उसका नजर पड़ा एगो फोटो पर, जिसमें उसकी माँ अऊर बाप का फोटो था. बच्चा माँ को पहिचान गया मगर बाप में एतना बदलाव आ गया था कि बेचारा को संदेह होने लगा.
ऊ अपना माँ से पूछा, माँ! इस फोटो में आपके साथ ये स्मार्ट से आदमी कौन है?
माँ बोली, पहचाना नहीं! ये तेरे पापा हैं!
बच्चा आश्चर्यचकित हो गया, बोला, कमाल है! इतने स्मार्ट!! तो फिर ये गंजा सा आदमी कौन है जो हमारे घर में रहता है और हम जिसे पापा कहकर बुलाते हैं?
अब देखिये, ऊ बचवा इस्मार्ट आदमी को अपना पापा मानने के लिए तैयार था, मगर पापा को गंजा होने पर भी इस्मार्ट मानने के लिए तैयार नहीं.
हमरी एकलौती बहिन विनी जब इस्कूल में पढ़ती थी, तब उसकी एगो सहेली थी बहुत पक्की, नाम था प्रिया. उसके घर विनी का आना-जाना भी था. मगर संजोग से प्रिया हमरे घर कभी नहीं आई थी. इसलिए हमरे परिबार में हमरी बहिन को छोडकर उसका किसी से परिचय नहीं था. बहिन को संकोच भी था कि हमरा घर कच्चा अऊर खपरैल है, जबकि प्रिया का घर बहुत बड़ा, पक्का अऊर फिलिम इस्टार सतरोहन सिन्हा के घर के बगल में.
एक रोज का मालूम कईसे उसकी सहेली का हमरे घर आने का प्रोग्राम बन गया. दिन, तारीख, समय सब तय हो गया. बहिन जी का घर भर को आदेस हो गया कि किसको का-का करना है. मगर एगो बात में पर्फेक्सन नहीं आ पा रहा था. बहिन जी को लगा कि हमरी माता जी खूबसूरत नहीं हैं या कहिये कि प्रेजेंटेबुल नहीं हैं. बस ओही मुद्दा पर संदेह का इस्थिति बना हुआ था. इहाँ बता दें कि हमरी माता जी के सुंदरता में भी कोनो कमी नहीं था, मगर घर के काम काज में ब्यस्त रहने के कारन साज-सिंगार पर ध्यान तनी कम्मे रहता था.
खैर, घर में माता जी को छोडकर सब चीज परफेक्ट हो गया. पूरा इत्मिनान कि सहेली के सामने नाक नहीं कटे. बहुत सा प्लान पर बिचार किया गया. मम्मी को गैरहाजिर भी नहीं किया जा सकता था. ऐसा करने से खेल बिगड़ जाता, काहे कि प्रिया अपनी मम्मी के साथ आने वाली थी. अंत में विनी ने ई समस्या का भी समाधान कर दिया अऊर हम सब लोग भी हंसकर मान लिए.
हमरी चाची विनी के नजर में प्रिया की मम्मी के टक्कर की ख़ूबसूरत थीं. फैसला हुआ कि चाची को बुला लेंगे अऊर कह देंगे कि यही मेरी मम्मी हैं. मम्मी से त ऊ लोग कभी मिला है नहीं, इसलिए पहिचानने का त सवाले पैदा नहीं होता है. अऊर दोबारा ऊ लोग आएगा भी नहीं. वैसे भी बाद का बाद में देखा जाएगा.
इस्टेज सेट हो गया. ठीक समय पर प्रिया अपनी माँ के साथ हमारे घर पर आई. विनी आगे बढकर स्वागत कीं. ऊ लोग को पुर्बारा (पूर्वी) घर में बैठाया गया. बातचीत सुरू करने के पहिले ही सहेली की मम्मी बोलीं, विनी! तुम्हारी मम्मी कहाँ हैं? बुलाओ उनको! अऊर स्क्रिप्ट के मोताबिक हमारी चाची कमरा में एंट्री मारीं. चाची को देखते ही ऊ खुसी से खड़ी हो गयी अऊर बोलीं, अरे! नीलिमा तुम!! कितने दिनों के बाद मिले हैं हम! मगर तुम यहाँ कैसे?
विनी मेरी जेठानी की बेटी है.
बगल वाले कमरा में हमरी माता जी अऊर हमलोग का हँसी रोके नहीं रुक रहा था. बास्तव में हमरी चाची अऊर सहेली की माँ दुनो कॉलेज की दोस्त थीं, बहुत पक्की. इसलिए चाची को झूठ बोलने का नौबत नहीं आया. बाद में माताजी भी आईं. पूरा नाटक के अऊर नाटक में हुआ परिबर्तन के बीच विनी चुप-चाप रही. पता नहीं बुजुर्ग लोग में नाटक के ओरिजिनल स्क्रिप्ट का चर्चा हुआ कि नहीं.
हमलोग जब कोनो नाटक का स्क्रिप्ट लिखते हैं, त समझते हैं कि हमसे सानदार त सलीम-जावेद भी नहीं लिख सकते. मगर हमलोग भुला जाते हैं कि हमलोग से बढ़िया नाटक लिखने वाला कोई और है, जो हम-सब लोग का रोल लिखता है. देखिये ज़रा, दुस्सासन जब चीर-हरण कर रहा था, तब उसको भी कहाँ मालूम था कि अचानक द्रौपदी के सखा का अदृस्य एंट्री हो जाएगा. अऊर दुर्योधन को भी कहाँ पता था कि महाभारत के स्क्रिप्ट में अचानक अर्जुन का सारथी महानायक बन जाएगा.

शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011

बाद मरने के मेरे

ई आभासी दुनिया का एगो सबसे बड़ा खासियत एही है कि इसमें घूमने वाला लोग बास्तबिक है. हर कोई का आपस में तार जुटा हुआ है. एही लोग से समाचार मिलता रहता है कि सब ठीक-ठाक है या अमुक के साथ अइसा हो गया. अभी कुछ रोज पहिले अचानक निर्मला कपिला जी (निम्मो दी) का मेल मिला अऊर उसमें ऊ बताईं कि उनको बहुत सीरियस बीमारी हो गया है अऊर ऊ एकदम बेड-रेस्ट में हैं. मनोज जी के एगो पोस्ट से पता चला कि संगीता स्वरुप जी को कार दुर्घटना में चोट लगा. पाबलाजी के साथ जो पर-साल दुर्घटना हुआ था उसका खबर भी अइसहीं पंडित अरविंदमिसरा जी के माध्यम से लगा था.
अब थोड़ा सा अऊर सीरियस बात करें त डॉ. अमर कुमार के स्वर्गबास के बारे में अऊर हमरे फेसबुक दोस्त हिमांशु मोहन जी के निधन के बारे में भी अइसहीं आभासी दुनिया के बास्ताबिक लोग के मार्फ़त पता चला. अइसने कोनो अबसर के लिए निदा फाज़ली साहेब एगो सेर कहे होंगे:
उम्र होने को है पचास के पार,
कौन है किस जगह पता रखना.
मगर केतना लोग अइसा भी होगा जिनके साथ, केतना तरह का दुर्घटना, अच्छा-बुरा घटता होगा, मगर उनका किसी के साथ कोनो संपर्क नहीं. हम जान भी नहीं पाते हैं ऊ लोग के बारे में. जानना जरूरी नहीं, मगर जानने में हरज भी नहीं. तनी ढाढस हो जाता है अऊर का!! बेचारा सोचता है कि एतना लोग है हमरे साथ.
एही सब बुरा अऊर बहुत बुरा समाचार के दौर में हमरी बिटिया सोनी का एस.एम्.एस. हमको मिला एक रोज. उसमें लिखा था
बाबूजी, बताइए!
अगर आपको मेरे मरने की खबर मिले
तो कितने दिनों में आप मेरा नंबर अपने मोबाइल से
डिलीट कर देंगे!
अभी साल भर पहिले नया जिन्नगी सुरू की है अऊर ई सब बात... फोन करके हम उसको डाँटे. बोली, हमसे कोइ पूछा था तो हम सोचे कि आपसे भी पूछ लें. इमैजिनरी सवाल का बास्ताबिक जवाब दीजिए. गोस्सा में हम बोले कि पागलपन वाला सवाल का हम जवाब नहीं देते हैं. ऊ समझ गयी कि कुछ बात मजाक से बाहर होता है!
मगर ओही दिन के बाद से हम अपना बारे में भी सोचने लगे कि अच्छा है हमरे साथ चैतन्य आलोक हैं. हमरे ब्लॉग का पासवर्ड उनके पास है अऊर हमरे हर साँस का हिसाब भी उन्हीं के पास है. अगर कभी हमरा साँस रुक जाए तो कम-से-कम एक ठो आदमी तो है जो हमरे नहीं होने का खबर आप लोग तक पहुंचा सकेंगे, एक दम फर्स्ट हैंड इनफोर्मेसन. काहे से कि हम त ग्रुप में ब्लॉग लिखते नहीं हैं, इसलिए ई खबर देने के लिए ग्रुप का लोग भी नहीं है हमरे पास.
एक रोज एगो मजाक करने का मन किया कि चैतन्य जी को बोलकर एगो पोस्ट लिखवाते हैं अपने मृत्यु का सूचना देने के लिए. देखते हैं लोग का-का कहता है हमरे बारे में. सायद अपना मृत्यु का सोक-संदेस अपने से पढने वाला पहिला आदमी होंगे हम. ऐसे भी कोइ बुरा तो बोलेगा नहीं, मगर भला के भेराईटी का फ्लेभर त देखने को मिलेगा ना! बाद में बता देंगे कि हम मजाक किये थे.
बाकी इसमें एगो नोकसान हो सकता है कि जदी सच्चो में कोनो दिन ई खबर मिलेगा आप लोग को तब???? तब त ई पोस्ट पढने वाला सबलोग समझेगा कि १४.१०.२०११ का रीठेल किया हुआ पोस्ट है. उस दिन कमेन्ट में सबलोग इस्माइली बनाएगा, लिखेगा कि बहुत अच्छे जा रहे हो, लगे रहो, आप भी बहुत अच्छा मजाक कर लेते हैं, अच्छी लगी आपकी मरने की खबर भी, हम तो दुबारा इस खबर को पढकर हंसते-हंसते बेहाल हो गए, हा हा हा, क्या कहने है आपकी मौत के!!
मगर एगो राज का बात बताएं, सच में हम एही चाहते हैं कि जब आप लोग को अलविदा कहें तो इसी तरह का कमेन्ट आप लोग से सुनने को मिले. आज तक आपलोग से कुछ नहीं मांगे हैं (टिप्पणी तक नहीं), कम-से-कम ई इच्छा तो पूरा करना बनता ही है!! वादा कीजिये!

शनिवार, 1 अक्तूबर 2011

एक दफा वो याद है तुमको!!


भयमुक्त समाज सुनने में बहुते अच्छा लगता है, लेकिन होता है कि नहीं, का मालूम. कम से कम हमको त एही अनुभव हुआ है कि ई सब मन बहलाने का झुनझुना है, सब आदमी के हाथ में थमा दिया गया है. बस एही देखकर खुस रहो कि सुरच्छित हो तुमलोग, एगो भयमुक्त समाज में. हमलोग भी मने मन सब जानते हुए तनी खुस हो लेते हैं कि कोनो है ऊपर बईठल जो कह रहा है कि योगक्षेमं वहाम्यहम.

जीते जी कहाँ मिलता है भय से मुक्ति. घर में रहिये त पत्नी का भय (पत्नी नहीं रहें त घर काटने को दौडता है अऊर रहें त ऊ अपने काटने को दौडती हैं), रोड पर एक्सीडेंट का भय, अपना गाड़ी में घूमिये त पेट्रोल के दाम का भय अऊर ऑफिस में हेड ऑफिस का भय! अरे ई भय से आतंकित होकर हमरे बड़े भाई श्री रविन्द्र कुमार शर्मा रवि जी (हमपेसा हैं अऊर बहुत कोमल हिरदय वाले सायर हैं) कल एस.एम्.एस. में बैंक में काम करने वाला कर्मचारी के लिए कुछ हॉरर सिनेमा का नाम घोषित कर दिए. एतना कोमल सायर अऊर ऐसन हॉरर सिनेमा का नाम सुनकर लगा कि केतना भयग्रस्त होंगे बेचारे:

१. तडपता क्लर्क   २. ऑफिसर की मौत   ३. कातिल मैनेजर   ४. खौफनाक मीटिंग ५. टारगेट का सदमा   ६. क्लोजिंग की आहट   ७. खून का प्यासा कस्टमर

अब जउन समाज में ऐसा-ऐसा भयानक बिचार आता होगा ऊ भयमुक्त कइसे हो सकता है भगवान जाने!

एक रोज हमरे बैंक में भी एगो चिट्ठी आ गया ऊपरवाले के तरफ से... अरे ओतना ऊपर वाला के तरफ से नहीं, उससे तनी नीचे वाला के तरफ से. चिठ्ठी का था, फरमान था कि फलाना तारीख को तीन बजे दिल्ली का पूरा ब्रांच से हर लेवल का सब ऑफिसर को एगो मीटिंग में उपस्थित रहना है. अब ई कहे का त कोनो जरूरत नहिंये है कि मीटिंग में हमरे माई-बाप का भासन होना था. जगह दिल्ली सहर के बाहरी छोर पर.

अब सब के अंदर भय ब्याप्त गया. नहीं गए तो...! अब ई सवाल का जवाब खोजने से अच्छा था कि चले चलो. टैक्सी, कार, अपना चाहे किराया का, सबमें भर-भर कर गया लोग-बाग. कोनो राजनैतिक रैली टाइप का दिरिस देखाई दे रहा था. एक-एक गाड़ी में जेतना आदमी समा सकता था, समा गया अऊर अपना हाजिरी लगा आया.

लौटने के टाइम में हमरे साथी अभय के गाड़ी में हमरे अलावा तीन महिला थीं. हम अभय के साथ सामने बैठे अऊर तीनों महिलायें पिछलका सीट पर. उनमें से एगो थी ज्योति जो ६-७ महीने की गर्भवती थी. मगर मजबूरी जो न कराये इस भयमुक्त समाज में. अभय बाबू बहुत साबधानी से गाड़ी चला रहे थे. मगर सामने एगो गाड़ी वाला पास भी नहीं दे रहा था अऊर बीचोबीच गाड़ी चला रहा था अपना मस्त चाल में. होरन का आवाज का भी कोनो असर नहीं हो रहा था. अभय बाबू को वैसे भी ई सब हरकत अनबर्दास्तेबुल (नाकाबिले बर्दाश्त या असहनीय) लगता है. जगह देखकर ऊ धीरे से इस्पीड बढाए अऊर साइड से ओभरटेक करके निकल गए. ई चक्कर में बीच वाला पीला लाइन से उनका दाहिना चक्का बाहर हो गया. तनिके आगे बढे होंगे कि पीछे से पुलिस का सायरन सुनाई देने लगा. कनखिया कर देखे त एगो मोटर साइकिल पर सिपाही हनहनाये हुए आ रहा था अऊर रुकने का इशारा कर रहा था.

हम बोले कि गाड़ी साइड में खडा करिये. मामला समझने के साथ, ओही समय हमरे माथा में गुलज़ार साहब का एगो नज्म सुनाई देने लगा:

एक दफा वो याद है तुमको,
बिन बत्ती जब साइकिल का चालान हुआ था
हमने कैसे, भूखे-प्यासे बेचारों सी एक्टिंग की थी
हवलदार ने उलटा एक अठन्नी देकर भेज दिया था
एक चवन्नी मेरी थी वो भिजवा दो!

हम ज्योति को बोले कि तुम सीट पर माथा पीछे करके आँख बंद कर लो. तब-तक हवलदार भी आ गया था. गोस्सा में बोला, ओवरटेक करते हो और लेन क्रोस करते हो. कागज़ निकालो!
तब तक हम सामने आ गए और बोले, देखिये सर! इमरजेंसी है!! हमारे साथ ये प्रेग्नेंट लेडी हैं और हम इनको लेकर हस्पताल जा रहे हैं. सामने वाला पास नहीं दे रहा था और बीचोबीच चला रहा था. हारकर ओवरटेक करना पडा!

हवलदार गाड़ी में झांक कर देखिस. ज्योति आँख बंद करके पीछे के तरफ आधा लेटी थी और बाकी दूनो महिलायें उसको दूनो साइड से संभाले हुए थीं. बेचारा हवलदार आदमी निकला, पुलिस नहीं. बोला, अब रोका है तो चालान तो करना ही होगा. रैश ड्राइविंग के लिए कम-से-कम एक हज़ार रुपया फाइन होता. मगर गलत पार्किंग के लिए सिर्फ सौ रुपये का चालान करता हूँ. आप लोग जल्दी जाओ!

बेचारा जल्दी-जल्दी चालान काटा अऊर हमलोग चल दिए. ज्योति का हंसी नहीं रुक रहा था. हम सब लोग हंस रहे थे. देखते-देखते गाड़ी के अंदर एकदम भयमुक्त समाज अस्थापित हो गया था.